आजादी के जश्न में पूरा देश डूबा हुआ है. 15 अगस्त को 78 वां स्वतंत्रता दिवस मनाया जा रहा है. जोर शोर से इसकी तैयारी की जा रही है. आजादी के मौके पर कई ऐसी अनसुनी कहानी सुनने में आती हैं जो बेहद खास होती हैं. ऐसी ही एक कहानी है मुरादाबाद के नवाब मज्जू खां की, जिनकी कुर्बानी को लोग आज भी याद करते हैं.
नवाब मज्जू खां की याद में मुरादाबाद के गलशहीद चौराहे पर गेट भी बना हुआ है. 1858 में अंग्रेजों के खिलाफ नवाब मज्जू खां ने जो आवाज उठाई थी ,वो उनकी शहादत के बाद भी उठती रही. ये आवाज इतनी बुलंद हो गई की देश के कोने-कोने में आजादी के लिए लोगों ने बढ़ चढ़कर लड़ाई लड़ी और अपनी जान देकर देश को आजाद कराया. संग्राम के इन शहीदों को आज पूरा देश सलाम कर रहा है.
शहीद के नाम पर अस्पताल और यूनिवर्सिटी बनाने की मांग
नवाब मज्जू खान मेमोरियल कमेटी के महानगर अध्यक्ष वकी रशीद ने सरकार से मांग की है कि गलशहीद चौराहे पर एक पक्का गेट बनाया जाए साथ ही उनके नाम से मुरादाबाद में एक अस्पताल और यूनिवर्सिटी बनवाई जाए. हाजी वकी रशीद ने बताया कि शहीद ए वतन नवाब मज्जू खा जिन्हें वो आखिरी नवाब कहते हैं, उन्होंने बताया कि नवाब मज्जू खां मुरादाबाद के इतिहास की बुलंद शख्सियत हैं. पूरे उत्तर भारत के अंदर जो अंग्रेजों का कब्जा था, उसमें मुरादाबाद एक ऐसी जगह थी जिसे सबसे आखिर में अंग्रेज फतेह कर पाए थे. उन्होंने बताया कि यहां जो किला था वह आखिरी किला था जिसे अंग्रेजों ने सबसे आखिर में फतह किया था.
नवाब मज्जू खां ने शुरू किया आंदोलन
उन्होंने बताया कि जब अंग्रेजों का जुल्म बहुत बढ़ गया था, तब मुरादाबाद के लोगों ने नवाब के पास जाकर आंदोलन करने की मांग की थी, जिसके बाद नवाब साहब ने आंदोलन शुरू किया. मुरादाबाद में भी आजादी की लड़ाई शुरू हुई, जिसके बाद 18 मई 1857 मुरादाबाद से अंग्रेजों को भगा दिया गया था, अंग्रेज इतना डर गए थे यहां से भागकर वो नैनीताल चले गए थे.
अंग्रेजों ने रची साजिश
आगे उन्होंने बताया कि अंग्रेजों ने मुरादाबाद किले को फतह करने के लिए रामपुर नवाब के साथ मिलकर साजिश रची. 22 अप्रैल 1858 को बहादुर शाह जफर जो मुगलिया सल्तनत के आखिरी बादशाह थे उनके बेटे फिरोज शाह मुरादाबाद आए थे, वह जब मुरादाबाद से वापस चले गए तो अंग्रेजो और रामपुर नवाब के द्वारा मुरादाबाद पर अचानक हमला कर दिया था, जिसके बाद मुरादाबाद में जंग शुरू हो गई थी, जिसमें कई लोग शहीद हो गए थे. इसके बाद अंग्रेज मुरादाबाद में दाखिल हो गए थे.
लाश के हाथी के पैर में बांधकर घुमाया
हाजी वकी रशीद ने बताया कि नवाब साहब के किले में 60 अंग्रेज सिपाही अंदर चले गए थे, नवाब साहब ने अकेले ही 60 सिपाहियों का कत्ल कर दिया था. इसके बाद अंग्रेजों ने अपनी फौज को भेज कर नवाब साहब को गोली मारकर शहीद कर दिया गया था और उनकी लाश को उबलते हुए चूने में डाल दिया था. जब लाश फूल गई तब उसे हाथी के पैर में बांधकर पूरे मुरादाबाद में घुमाया गया था.
कब्रिस्तान के पेड़ पर लटकाया शव
इसके बाद लाश को गलशहीद के कब्रिस्तान में लाकर पेड़ से लटका दिया गया था, और यह ऐलान किया गया था कि कोई भी इस लाश को कब्रिस्तान के अंदर दफन नहीं करेगा, लेकिन वहां पर जो गलशहीद के बाबा थे उन्होंने नवाब साहब की लाश को कब्रिस्तान में दफन करके उनकी कब्र बना दी थी. उन्होंने बताया कि नवाब साहब के साथ आजादी की लड़ाई हिंदू और मुसलमान दोनों थे. इन लोगों को ढूंढ ढूंढकर अंग्रेजों ने मारा गया था.
मुरादाबाद जिले के गलशहीद के बारे में जब पता लगाया गया तो मालूम हुआ कि ये जगह शहीदों की मिट्टी के नाम से मशहूर थी. दिल शाहिद बदलते बदलते गलशहीद हो गया. यहां इबरत का निशाना बनाया गया था, और उसमें यह संदेश दिया गया था जो भी अंग्रेजों के खिलाफ बोलेगा उसका हाल हम यही करेंगे. नवाब साहब की जो मेहनत थी वह आखिर में जाकर काम आई देश आजाद हुआ और अंग्रेज यहां से चले गए.