नई दिल्ली: भारत का केंद्रीय बजट सरकार द्वारा प्रस्तुत किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण वार्षिक दस्तावेज है, जो आगामी वित्तीय वर्ष के लिए नियोजित रेवेन्यू और खर्च की रूपरेखा प्रस्तुत करता है. यह आर्थिक नीतियों, प्राथमिकताओं और विकास की रणनीतियों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है. शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, बुनियादी ढांचा, रक्षा और सामाजिक कल्याण जैसे प्रमुख क्षेत्रों में संसाधनों के आवंटन को निर्देशित करता है.
बजट में रेवेन्यू के सोर्स को भी बताया जाता है, मुख्य रूप से टैक्स के माध्यम से, और राजकोषीय नीति और घाटे के प्रबंधन के लिए रणनीतियों की रूपरेखा तैयार की जाती है. इस प्रकार यह निवेशकों के विश्वास और बाजार की प्रतिक्रियाओं को प्रभावित कर सकता है. जिससे व्यापार वृद्धि, वित्तीय बाजार और यहां तक कि अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होती है.
बजट में सामाजिक कल्याण योजनाओं, सब्सिडी और सार्वजनिक सेवाओं के लिए किए गए आवंटन का लाखों नागरिकों की आजीविका पर सीधा प्रभाव पड़ता है, जिससे गरीबी, बेरोजगारी और असमानता दूर होती है. बजट महंगाई और ब्याज दरों को भी प्रभावित करता है, जो जीवन यापन और उधार लेने की लागत को प्रभावित करता है.
क्यों पेश किया गया बजट?
दरअसल, 1857 के विद्रोह की वजह से अंग्रेजी हुकूमत को काफी नुकसान हुआ था। विद्रोह को ब्रिटिश हुकूमत ने क्रूरता के साथ दबाया था। इस पूरे घटनाक्रम की पूरी दुनिया सहित लंदन के हाउस ऑफ कॉमन्स में भी निंदा हुई। 1857 के विद्रोह के बाद सरकार को हुए नुकसान की भरपाई के लिए भारत में एक कर प्रणाली लागू करने का खाका खींचा गया। ज्यादा उगाही के लिए नई कर प्रणाली लागू करने का प्रस्ताव रखा गया। 7 अप्रैल, 1860 को पहला केंद्रीय बजट पेश किया गया था।
इस बजट में प्रस्तावित कर प्रणाली को लेकर समय-समय पर कई संशोधन किए गए। 1886 में एक अलग आयकर अधिनियम पारित किया गया। विल्सन के इस प्रस्ताव का हाउस ऑफ कॉमन्स में आलोचना भी हुई। सर चार्ल्स ट्रेवेलियन ने भारत के लोगों पर नए कर लगाने की अव्यवहारिकता के बारे में अपनी राय दी थी। उन्होंने कहा था कि भारत में वर्तमान संकट वर्तमान पीढ़ी की स्मृति में घटित किसी भी घटना की तुलना में अच्छे या बुरे, दोनों तरह के परिणामों से भरा हुआ है। अब जो रास्ता अपनाया जाएगा, उस पर पूर्व में हमारे साम्राज्य का भविष्य निर्भर करेगा। कई सदस्यों ने इस बजट और इसमें दिए गए कर प्रणाली के प्रावधानों की आलोचना की।
आजाद भारत का पहला बजट
देश की आजादी के बाद एक मजबूत आर्थिक आधार की जरूरत थी। स्वतंत्रता के बाद पहला बजट 26 नवंबर 1947 को पेश किया गया था। इसे भारत के पहले वित्त मंत्री आर के शनमुखम चेट्टी ने प्रस्तुत किया था। यह बजट भारतीय अर्थव्यवस्था को सुधारने के मकसद से तैयार किया गया था, ताकि स्वतंत्रता के बाद देश की आर्थिक स्थिति को सुधारने की दिशा में कदम उठाए जा सके। उस समय पहला केंद्रीय बजट भारत के विभाजन के दौरान हुए बड़े पैमाने पर दंगों के बीच पेश किया गया था।