सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कन्नौज लोकसभा सीट रखने का फैसला किया है, जिसके चलते विधायक पद से इस्तीफा दे दिया है. विधायकी छोड़ने के चलते ही नेता प्रतिपक्ष का पद भी खाली हो गया है. समाजवादी पार्टी को उत्तर प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के लिए मजबूत नेता की तलाश करनी होगी, जो अखिलेश यादव की जगह ले सके. सूबे के सपा के सियासी एजेंडा को आगे बढ़ाने और विधानसभा सदन में योगी सरकार को घेरने की ताकत रखने वाला चाहिए होगा, ऐसे में अब सवाल उठता है कि अखिलेश यादव किसे नेता प्रतिपक्ष बनाएंगे?
अखिलेश यादव 2022 में पहली बार मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट से विधायक चुने गए. उस समय वो आजमगढ़ से लोकसभा सदस्य थे, लेकिन उन्हें सांसद पद से इस्तीफा देकर विधायकी को अपने पास रखा था. अखिलेश यादव विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहते हुए योगी सरकार को सड़क से सदन तक घेरते हुए नजर आते थे, लेकिन अब कन्नौज लोकसभा सीट से चुनाव जीतने के बाद फिर से दिल्ली की सियासत करने का फैसला किया है. ऐसे में उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया है, जिसके चलते करहल विधानसभा सीट के साथ-साथ नेता प्रतिपक्ष का पद भी खाली हो गया है.
समाजवादी पार्टी को एक ऐसे नेता की जरूरत है, जो विधानसभा में अखिलेश यादव की जगह ले सके. ऐसे में सभी के मन में सवाल है कि विधानसभा में कौन होगा नेता प्रतिपक्ष, इस फेहरिस्त में कई नेताओं के नाम शामिल हैं. हालांकि, सपा के मौजूदा विधायकों में इस समय आक्रामक वक्ता की कमी है, जो जरूरत पड़ने पर तुरंत प्रतिक्रिया दे सके और विभिन्न मुद्दों पर सरकार को घेर सके.
इन नेताओं ने छोड़ी सांसदी
सपा के कद्दावर नेता आजम खान उत्तर प्रदेश विधानसभा से निष्कासित हो चुके हैं और फिलहाल जेल में बंद हैं. इसके अलावा 2017 से 2022 के बीच विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे राम गोविंद चौधरी 2022 में विधायक नहीं बन सके. आजम खान भी नेता प्रतिपक्ष रह चुके हैं. इसके चलते सपा के दोनों नेता पूरी तरह से रेस से बाहर हैं. सपा के मुख्य सचेतक रहे मनोज पांडेय इस्तीफा दे चुके हैं और अब बीजेपी के पाले में खड़े हैं. सपा के दिग्गज नेता अवधेश प्रसाद ने अयोध्या से लोकसभा सांसद चुने जाने के बाद विधायक पद से इस्तीफा दे दिया है, तो लालजी वर्मा अंबेडकर नगर से सांसद चुने जाने के बाद अब विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा देने वाले हैं.
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के लिए विकल्पों में सबसे पहले नाम इंद्रजीत सरोज, शिवपाल यादव, दुर्गा यादव, राम अचल राजभर, माता प्रसाद पांडेय और रविदास मेहरोत्रा जैसे नेताओं के नाम आते हैं. हालांकि, अखिलेश यादव विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाकर सिर्फ सदन के समीकरण को नहीं साधना चाहते हैं बल्कि अपने पीडीए फार्मूले को भी अमलीजामा पहनाने की कवायद करेंगे. ऐसे नेता को तलाश करना है, जो बोलने की कला जानता हो और सपा के जातिगत समीकरण में भी फिट बैठता हो.
चाचा शिवपाल यादव क्यों नहीं बनेंगे नेता प्रतिपक्ष?
अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव छह बार से विधायक हैं. वह 2009 से 2012 के बीच नेता प्रतिपक्ष रह चुके हैं, लेकिन उन्हें अच्छा वक्ता नहीं माना जाता है. इसके अलावा एक और भी समस्या है कि शिवपाल यादव को नेता प्रतिपक्ष बनाया जाता है, तो फिर सपा पर यादव परस्ती का आरोप भी लगेगा. सपा के अध्यक्ष से लेकर लोकसभा के नेता और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष पद पर यादव समुदाय के होने से विपक्ष को घेरने का मौका मिल जाएगा. इसीलिए माना जा रहा है कि सपा प्रमुख अखिलेश नेता प्रतिपक्ष पद किसी गैर-यादव नेता को सौंप सकते हैं और अपने चाचा शिवपाल को मुख्य सचेतक का पद दे सकते हैं.
अंबेडकर नगर से विधायक राम अचल राजभर और कौशांबी से विधायक इंद्रजीत सरोज को नेता प्रतिपक्ष बनाने का दांव अखिलेश यादव खेल सकते हैं. राम अचल गैर-यादव ओबीसी से आते हैं. राजभर समुदाय के बड़े नेता हैं, तो इंद्रजीत सरोज दलित समुदाय के पासी जाति से आते हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में जिस तरह से पासी समुदाय ने सपा को वोट किया है और पांच पासी उनकी पार्टी से चुनकर आए हैं, ऐसे में इंद्रजीत के नेता प्रतिपक्ष बनने के लिए चांस बहुत ज्यादा दिख रहे है, क्योंकि अखिलेश यादव के नेता प्रतिपक्ष पद रहते हुए इंद्रजीत सरोज सदन में उपनेता के पद पर हैं. सपा के सियासी समीकरण में भी फिट बैठते हैं. राम अचल राजभर भले ही गैर-यादव ओबीसी से आते हों, लेकिन उनका सियासी आधार पूरे यूपी में नहीं है, लेकिन पासी समुदाय पूरे यूपी में है.
राममूर्ति वर्मा का नाम रेस में आगे
सपा के दिग्गज विधायक राममूर्ति वर्मा भी विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष की रेस में है, क्योंकि कुर्मी समुदाय से आते हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में कुर्मी समुदाय एकमुश्त होकर सपा के पाले में गया है. इसके चलते सपा के टिकट पर कई कुर्मी सांसद चुने गए हैं. पूर्वांचल में कुर्मी वोटों के दम पर ही अखिलेश यादव बीजेपी को करारी मात देने में सफल रहे हैं. कुर्मी समुदाय से किसी को नेता प्रतिपक्ष बनाने का फैसला होता है तो राममूर्ति वर्मा के नाम पर मुहर लग सकती है. आजमगढ़ जिले से विधायक हैं और गैर-यादव ओबीसी के फॉर्मूले में फिट बैठते हैं.
माता प्रसाद पांडेय सपा के कद्दावर नेता हैं और ब्राह्मण समुदाय से आते हैं. 2012 से 2017 के बीच अखिलेश के सीएम कार्यकाल के दौरान माता प्रसाद विधानसभा अध्यक्ष थे. उन्हें एक अच्छे वक्ता के रूप में देखा जाता है, लेकिन उनकी उम्र काफी हो चुकी है और अस्वस्थ रहने के चलते नियमित रूप से सदन की कार्यवाही में शामिल नहीं पाते हैं. इसके चलते उनका विधानसभा में प्रतिपक्ष का नेता बनना मुश्किल है. लखनऊ मध्य से विधायक रविदास मेहरोत्रा, जो 2024 के लोकसभा चुनाव में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को कड़ी टक्कर दी थी, एक प्रभावी वक्ता के रूप में देखे जाते हैं, लेकिन सपा के सियासी समीकरण में फिट नहीं बैठ रहे हैं.