HC on live-in-Relationship: लिव-इन रिलेशनशिप के बाद ब्रेकअप पर देना होगा खर्च, HC ने महिलाओं के हित में दिया आदेश
HC on live-in-Relationship: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट (Madhya Pradesh High Court) ने लिव-इन रिलेशनशिप के मामले में महिलाओं को अधिकार देने की दिशा में एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के बाद अगर ब्रेकअप होता है तो महिला गुजारा भत्ता पाने की हकदार है। हाई कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि अगर कोई महिला किसी पुरुष के साथ लंबे समय से रिलेशनशिप में है और फिर वे अलग हो गए हैं तो महिला महिला भरण-पोषण की हकदार है। भले ही वे कानूनी तौर पर शादीशुदा न हों।
एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार , मध्य प्रदेश HC ने एक याचिकाकर्ता के मामले की सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया, जिसने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसे उस महिला को मासिक भत्ता देने की आवश्यकता थी, जिसके साथ वह लिव-इन रिलेशनशिप में रहता था।
हाईकोर्ट ने युवक की याचिका खारिज की
A woman living with a person for a considerably long period of time is entitled to maintenance on separation even if they were not legally married, Madhya Pradesh high court has said.
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— The Times Of India (@timesofindia) April 6, 2024
दरअसल, बालाघाट जिला अदालत ने लिव-इन रिलेशनशिप मामले में महिला के पक्ष में फैसला सुनाया और याचिकाकर्ता शैलेश बोपचे को 1500 रुपये गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। इसके बाद शैलेश बोपचे ने उस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी। आवेदक एक युवती के साथ लिव-इन रिलेशनशिप (Live In Relationship Case) में रह रहा था। युवक ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की कि मंदिर में शादी होने का दावा करने के बाद महिला जिला अदालत में इसे साबित नहीं कर पाई, फिर भी उसकी याचिका स्वीकार कर ली गई। हालांकि, हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता की याचिका को रद्द कर दिया था।
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महिला ने बच्चे को जन्म दिया, इसलिए भरण-पोषण की हकदार: हाईकोर्ट
बोपचे के वकील ने अदालत को बताया कि महिला उनकी कानूनी पत्नी नहीं है, इसलिए सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की हकदार नहीं है। इस मामले में जस्टिस जीएस अहलूवालिया की बेंच ने कहा, ‘ट्रायल कोर्ट ने यह नहीं कहा था कि महिला याचिका करता की कानूनी रूप से विवाहिता है और यह भी साबित नहीं कर पाईं कि उनकी शादी मंदिर में हुई थी।’ इसके साथ ही कोर्ट ने आदेश में कहा, ‘ट्रायल कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला है कि पुरुष और महिला लंबे समय से पति-पत्नी के रूप में रह रहे थे और महिला ने एक बच्चे को भी जन्म दिया है, इसलिए महिला गुजारा भत्ता पाने की हकदार है।’ सुनवाई के दौरान जजों ने इस बात पर जोर दिया कि, ‘अगर कपल के बीच फिजिकल रिलेशन का का सबूत है तो गुजारा भत्ता देने से इनकार नहीं किया जा सकता।
अदालत ने आगे फैसला सुनाया कि रिश्ते के भीतर बच्चे के जन्म ने महिला के मासिक भरण-पोषण के अधिकार को मजबूत किया है।
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लिव-इन में महिला अलग होने पर भरण-पोषण की हकदार
लिव-इन रिलेशनशिप में महिलाओं के अधिकारों को मान्यता देते हुए एक फैसले में, मध्य प्रदेश हाई कोर्ट (HC on live-in-Relationship) ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि एक पुरुष के साथ लंबे समय तक लिव इन रिलेशन में रहने वाली महिला अलग होने के बावजूद भी भरण-पोषण की हकदार है, भले ही वे कानूनन तौर पर उस शख्स की विवाहिता न हों।
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का यह महत्वपूर्ण फैसला भारत में लिव-इन संबंधों के मामले में कानूनी परिदृश्य की भागीदारी पर प्रकाश डालता है। इस साल फरवरी में, उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू किया गया, जिसमे लिव-इन रिलेशनशिप मैं रहने के लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया गया था।
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