रामचरितमानस में मिलता है जीवन का सार, यहां पढ़ें सुंदर चौपाईयां

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"भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहि जे नर अरू नारि।तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहि त्रिसरारी।।"

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मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अचर बिहारी।।

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हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥

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जा पर कृपा राम की होई। ता पर कृपा करहिं सब कोई॥

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होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा॥

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गुर बिनु भव निध तरइ न कोई। जौं बिरंचि संकर सम होई॥

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"गुरु ग्रह गए पढ़न रघुराई। अलपकाल विद्या सब आई ।।"

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बिनु सत्संग विवेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥ सठ सुधरहिं सत्संगति पाई। पारस परस कुघात सुहाई॥

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धीरज धरम मित्र अरु नारी आपद काल परखिये चारी॥

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शादीशुदा मर्दों की जवानी पर फिसलीं ये हसीनाएं, चंद मुलाकातों में चढ़ा इश्क का बुखार