आपकी अंतरआत्मा को छू लेंगे मीराबाई के ये अनमोल दोहे
Meera Bai: मीरा बाई ने अपना पूरा जीवन भगवान कृष्ण की भक्ति में बिताया। अपने गुरु संत रविदास के साथ रहते हुए मीराबाई का मन सांसारिक मोह को त्याग कर कृष्ण प्रेम और कृष्ण भक्ति में रमता था।
मीराबाई के जीवन से हमें भगवान की भक्ति और भक्तिरस में डूबे रहने की प्रेरणा मिलती है। आइए डालते हैं उनके कुछ दोहों पर एक नजर:
1. मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरों न कोई। जाके सिर मोर मुकट मेरो पति सोई।।
2. हरि तुम हरो जन की भीर।द्रोपदी की लाज राखी, तुम बढायो चीर॥
3. तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई।छाड़ि दई कुलकि कानि कहा करिहै कोई।।
4. अन्न नहीं भावे नींद न आवे विरह सतावे मोय।घायल ज्यूं घूमूं खड़ी रे म्हारो दर्द न जाने कोय।।
5. हे री मैं तो प्रेम-दिवानी मेरो दरद न जाणै कोय।घायल की गति घायल जाणै, जो कोई घायल होय।
6. आप न आवै लिख नहिं भेजै बाण पड़ी ललुचावन की।ए दोउ नैण कहयो नहीं मानै नदिया बहैं जैसे सावन की॥
7. तोड़त जेज करत नहिं सजनी जैसे चमेली के मूल।मीरा कहे प्रभु तुमरे दरस बिन लगत हिवड़ा में सूल॥
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