कभी हिंदू-बौद्ध देश था अफगानिस्तान, जानिए कैसे हुआ भारत से अलग

इतिहास गवाह है कि अफगानिस्तान 7वीं सदी तक अखंड भारत का एक हिस्सा था। उस दौर में यह एक हिंदू राष्ट्र था।

बाद में अफगानिस्तान बौद्ध राष्ट्र बना और अब यह एक इस्लामिक देश है। 17वीं सदी तक अफगानिस्तान नाम का कोई राष्ट्र नहीं था।

गंधार और कंबोज के कुछ हिस्सों को मिलाकर अफगानिस्तान बना था। इस संपूर्ण क्षेत्र में हिन्दूशाही और पारसी राजवंशों का शासन रहा था।

ईसा पूर्व 700 साल पहले तक इसके उत्तरी क्षेत्र में गांधार महाजनपद था, जिसके बारे में महाभारत और अन्य ग्रंथों में वर्णन मिलता है।

अफगानिस्तान में पहले आर्यों के कबीले आबाद थे और वे सभी वैदिक धर्म का पालन करते थे, फिर बौद्ध धर्म के प्रचार के बाद यह स्थान बौद्धों का गढ़ बन गया।

अफगानिस्तान के बामियान, जलालाबाद, बगराम, काबुल, बल्ख आदि स्थानों में अनेक मूर्तियों, स्तूपों, संघारामों, विश्वविद्यालयों और मंदिरों के अवशेष देखे जा सकते हैं।

महमूद गजनी और उसके बाद के शासकों ने लूटपाट के अलावा जीते हुए क्षेत्रों के मंदिरों, शिक्षा केंद्रों, मंडियों और भवनों को नेस्तनाबूत कर दिया और स्थानीय लोगों का धर्म परिवर्तन कराया।

17-18वीं सदी में यह दिल्ली के मुस्लिम शासकों के कब्जे में रहा और फिर ब्रिटिश इंडिया ने अपने कब्जे में ले लिया।

1834 में एक प्रकिया के तहत 26 मई 1876 को रूसी व ब्रिटिश शासकों (भारत) के बीच गंडामक संधि हुई और अफगानिस्तान नाम से एक बफर स्टेट बना।

इससे अफगानिस्तान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से अलग हो गया। 18 अगस्त 1919 को अफगानिस्तान को ब्रिटिश शासन से आजादी मिली।

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