International Chess Day 2024: प्राचीन समय से ही भारत में खेला जाता था शतरंज, आखिर कैसे बना चतुरंग से Chess ?
International Chess Day 2024 : दुनिया भर में तमाम देशों में चतुरंग का प्रचार प्रसार होते हुए जब इस खेल ने फ्रांस में कदम रखा तो वहां इसे एक नया ही नाम दिया गया– ‘Echecs’ जिसका मतलब होता है हार जाना। धीरे धीरे एचेस (Echecs) को अंग्रेजी में ‘Chess’ कहा जाने लगा।
International Chess Day 2024: हर साल दुनिया भर में आज के दिन यानी 20 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय शतरंज दिवस मनाया जाता है। शतरंज एक बौद्धिक खेल है, जिसे दो खिलाड़ी साथ मिलकर खेलते हैं। लेकिन क्या आपको शतरंज का इतिहास मालूम है? क्या आप जानते हैं कि आखिर कैसे दुनिया भर में शतरंज को प्रसिद्धि मिली? तो चलिए आज के इस लेख में हम आपको शतरंज का इतिहास बता रहे हैं।
हर साल 20 जुलाई को दुनिया भर के लोग इंटरनेशनल चैस डे सेलिब्रेट करते हैं। कहा जाता है कि आज के ही दिन इंटरनेशनल शतरंज संघ (FIDE) की भी स्थापना हुई थी। 20 जुलाई के दिन देश और दुनिया भर में अलग-अलग जगह पर शतरंज के खेलों का आयोजन किया जाता है। दो खिलाड़ियों के बीच खेले जाने वाले इस मनोरंजक खेल को दो प्यादे मात देने के लिए तरह-तरह की योजनाएं बनाते हैं। शतरंज को खेलने के लिए खिलाड़ी को काफी दिमाग खर्च करना पड़ता है, इसलिए ही शतरंज को दिमाग तेज करने वाला गेम भी कहा जाता है। शतरंज को अंग्रेजी में चैस कहा जाता है। आप ने भी अपनी लाइफ में कभी ना कभी चैस यानी शतरंज जरूर ही खेला होगा लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि आखिर शतरंज का इतिहास क्या है? आज अंतरराष्ट्रीय शतरंज दिवस के अवसर पर हम आपको विस्तार से बताएंगे कि आखिर चैस की शुरुआत किसने की थी और कैसे हुई थी।
भारत का चतुरंग है आज का चैस
वैसे इस खेल की हकीकत तो यह है कि काले और सफेद रंग के चौखानों वाले पट में दुनिया भर में खेला जाने वाला यह खेल (International Chess Day 2024) हकीकत में हमारे देश भारत की ही देन है। इस लिए यह खेल हमारे देश का प्राचीन खेल है। चतुरंग का वर्णन हमारे भविष्यपुराण में भी मिलता है। हड़प्पा कालीन सभ्यता में भी चतुरंग खेल के अवशेष पाए गए हैं। छठवीं शताब्दी में गुप्तकाल में इस खेल का प्रचार और प्रसार अधिक होता गया और यह अस्तित्व में आया। यही वजह है अब तमाम लोग इस खेल की शुरुआत भी छठी शताब्दी के समय से ही मानते हैं। उस समय में इसे चतुरंग कहां जाता था और यह 64 चौखानों के पट पर खेला जाता था।
चतुरंग से पहले चतरंग फिर बन गया शतरंज
काले और सफेद रंग के चौखानों वाले का ये पहला ऐसा खेल था, जिसे खेलने के लिए के लिए दिमाग का इस्तेमाल किया जाता था। हमारे प्राचीन काल के उस समय ये खेल युद्ध वाले फॉर्मेट में था, जिसमें घुड़सवार सेना, पैदल सेना, हाथी, बिशप, रथ, शूरवीर, और किश्ती आदि शामिल थे। भारत के बाद ये खेल पारसी देशों में प्रचलित होता चला और फिर धीरे धीरे स्पेन,यूरोप, चीन, रूस, आदि देशों में फैलते हुए विश्वभर में प्रचलित हो गया। प्रचार प्रसार के साथ साथ इस खेल में भी कुछ बदलाव किए गए। जगह- जगह पर इसे अलग नाम दिए गए.। इसी बीच ये चतुरंग से पहले चतरंग फिर शतरंज बन गया।
जानें कैसे चतुरंग बना चेस
दुनिया भर में तमाम देशों में चतुरंग का प्रचार प्रसार होते हुए जब इस खेल ने फ्रांस में कदम रखा तो वहां इसे एक नया ही नाम दिया गया– ‘Echecs’ जिसका मतलब होता है हार जाना। धीरे धीरे एचेस (Echecs) को अंग्रेजी में ‘Chess’ कहा जाने लगा। अब आज दुनियाभर में इस खेल का कंट्रोल फेडरेशन इंटरनेशनल दि एचेस (Fédération Internationale Des Echecs) द्वारा किया जाता है, इसे ही फिडे (FIDE) कहा जाता है। फिडे (FIDE) को इंटरनेशनल चेस फेडरेशन या वर्ल्ड चेस फेडरेशन भी कहा जाता है। फिडे (FIDE) ही अब वैश्विक स्तर पर शतरंज के खेल का आयोजन करता है। इस खेल को जीतने वाले को खिलाडी को ग्रैंड मास्टर की उपाधि दी जाती है।
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